पौष पुत्रदा एकादशी
जय श्री राधे
कुछ लोगो के मन के सवाल है, कुछ संशय है कि भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि हमे निष्काम कर्म करना चाहिए, फल की इच्छा के बिना। पर हमारी सनातन संस्कृति में जितने भी धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है वो किसी न किसी रूप से किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाते है , अर्थात उसमे फल कि इच्छा तो होती ही है। चाहे हम कोई यज्ञ करे, किसी व्रत उपवास का संकल्प ले, या फिर वो कोई भी पूजा जो कि मंगल कार्यो में की जाती है, सबमें कर्म के बदले फल की इच्छा निहित होती है। तो क्या हम भगवान् श्री कृष्ण जी के दिए गीता ज्ञान की अवहेलना कर रहे है? निष्काम कर्म ना करके!
इसका उत्तर है नही ! संतो की वाणी है मेरी खुद की नहीं है, जैसे मैंने उनसे जाना है, वैसा बताती हूँ…
हमें ये मानव देह सिर्फ मुक्ति के लिए मिला है, इस शरीर का इसके अलावा कोई भी प्रयोजन नहीं है। मुक्ति मिलेगी श्री हरि भजन करने से। श्री हरि भजन मन लगेगा कैसे, जब हम श्री हरी में अपना ध्यान लगायेंगे, और ध्यान कैसे लगेगा, जब हमारी श्री हरी में आसक्ति होगी, और वो आसक्ति उसी स्तर की होनी चाहिए जैसी आसक्ति हम संसार से कर बैठते है।
सुबह शाम आठों याम बस उसी के ख्याल में डूबे रहे।
किसी व्रत को रखने से कुछ फल प्राप्त होता है, ये भाव रख कर कोई मनुष्य व्रत रखता है लालच में, जब उसकी इच्छा पूरी होती है, तब उसे पता भी नहीं चलता पर वो धीरे धीरे भगवान् के नजदीक जाने लगता है, उसका मोह भगवान् के प्रति बढ़ता जाता है और उसे पता भी नहीं चलता।
तो दोस्तों निष्काम कर्म बहुत जरूरी है सांसारिक व्यवहार में, और निष्काम कर्म की भक्ति में भी बहुत आवश्यकता है लेकिन यदि किसी व्यक्ति का मन ही नहीं लगता भक्ति में, भगवत भजन में, तो थोड़े लालच से यदि श्री भगवान में मन लग सकता हो, तो उसमें हर्ज ही क्या है।
लालच क्या? जैसे एकादशी की व्रत कथा हम सुनते है पढ़ते है, इस एकादशी की ये विशेषता है और इसको करने से हमें फल प्राप्त होता है।
तो जैसा की आपने सफला एकादशी की कथा पढ़ी होगी, उसमें भी तो यही है , भगवान की भक्ति जान के करें या अनजाने में, उसका अंतिम फल तो श्री कृष्ण की शरणागति ही है।
वैसे ही व्रत/उपवास या अन्य धार्मिक अनुष्ठान है, वो श्री हरी की ओर ले जाने का साधन मात्र है या कहें एक रास्ता है, और देखो हमारे भगवन कितने दयालु है कि उस रास्ते में हम कोई तकलीफ न इसलिए रास्ते में जगह जगह लालच रूपी, उन शुभ कार्यों का कुछ फल भी दे देते है ।
इसी प्रकार एकादशी, उनकी व्रत कथा और उससे प्राप्त होने वाला फल है, इन सब का प्रयोजन एक ही है, श्री हरी प्राप्ति।
आइये अब जान लेते है 24 जनवरी 2021आन वाली पुत्रदा एकादशी के बारे में ।
पुत्रदा एकादशी कथा
पुत्रदा एकादशी (“एकादशी जो पुत्रों की दाता है”) एक हिंदू पवित्र दिन है ,जो पौष (दिसंबर-जनवरी) के हिंदू महीने में 11 वें चंद्र दिवस (एकादशी) को पखवाड़े के चांद पर पड़ता है। इस दिन को पौष पुत्रदा एकादशी के रूप में भी जाना जाता है , इसे श्रावण (जुलाई-अगस्त) में अन्य पुत्रदा एकादशी से अलग करने के लिए, जिसे श्रावण पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है।
इस दिन विवाहित जोड़े उपवास करते हैं और एक अच्छे पुत्र के लिए भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। यह दिन विशेष रूप से विष्णु के अनुयायियों वैष्णवों द्वारा मनाया जाता है। इस व्रत को निर्जला और फलाहरी दोनों तरीके से रखा जा सकता है।
हिंदू समाज में एक पुत्र होना महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वह जीवन में अपने बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करता है और श्राद्ध (पूर्वज संस्कार) करने के बाद जीवन में अपने माता-पिता की भलाई सुनिश्चित करता है। जबकि प्रत्येक एकादशी निश्चित लक्ष्यों के लिए निर्धारित की जाती है, पुत्र होने का लक्ष्य इतना महान है कि दो पुत्रदा (“पुत्रों के दाता”) एकादशी को समर्पित हैं। बाकी लक्ष्य इस विशेषाधिकार का आनंद नहीं लेते हैं |
भाव पुराण में भगवान श्री कृष्ण द्वारा राजा युधिष्ठिर को बताई गई पुत्रदा एकादशी की कहानी बताई गई है।
एक बार , भद्रावती के राजा, सुकेतुमान और उनकी रानी शैय्या संतान की कोई संतान नहीं थी, जिससे वो काफी दुखी रहते थे। दंपति के साथ-साथ उनके मृत पूर्वजों को भी चिंता थी कि बिना श्राद्ध अर्पित किये , वे शांति से नहीं होंगे और मृत्यु के बाद खोई हुई आत्मा बन जाएंगे। निराश होकर राजा ने अपना राज्य छोड़ दिया और सभी के लिए (अपने और अपने पूर्वजों के लिए) जाने-अनजाने जंगल में चले गए। बहुत दिन जंगल भटकने के बाद, सुकेतुमान को पुत्रदा एकादशी पर मानसरोवर झील के किनारे कुछ संतों का आश्रम मिलता है। ऋषियों ने बताया कि वे दस दिव्य विश्वदेव हैं। सुकेतुमान उन्हें सारी व्यथा बताते है, ऋषियों ने राजा को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन करने की सलाह दी। राजा ने अनुपालन किया और राज्य में लौट आया। जल्द ही, राजा को एक बेटे का आशीर्वाद मिला, जो बड़ा होकर एक वीर राजा बन गया।
जो महिलाएं लंबे समय तक पुत्र व्रत रखती हैं और पुत्रदा एकादशी पर विष्णु से प्रार्थना करती हैं उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है । जोड़े अपने बच्चों के कल्याण के लिए देवता की पूजा भी करते हैं।
इस दिन अनाज, बीन्स, और सब्जियों और मसालों से परहेज किया जाता है। यह पौष पुत्रदा एकादशी उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय है, जबकि अन्य राज्य श्रावण पुत्रदा एकादशी को अधिक महत्व देते हैं।
इस एकादशी में ऐसा नहीं कि ये व्रत सिर्फ उन्ही को रखना जिसे संतान की चाह हो, साल कि सारी एकादशी के व्रत करने है वो भी पूरी श्रद्धा से। संशय नहीं रखना इसमें।
जय श्री राधे
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे