आमलकी एकादशी व्रत कथा और इसका महत्व

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जय श्री राधे
जय श्री कृष्ण

वर्तमान के अच्छे कर्म ही, हमारे अगले जन्म के भाग्य का कारण बनते है। हमारे कर्म चाहे जाने अनजाने अच्छे हो या बुरे उसका फल तो भोगना ही होता है यही विधि का विधान है।

मार्च के महीने मे, फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी कुछ खास है क्या खास इस एकादशी में आइए जानते है।

प्राचीन काल में महान राजा मान्धाता ने वशिष्ठ जी से पूछा है कि हे ! मुनिवर मुझ पर कृपा कर मुझे ऐसा मार्ग बताए जिससे मेरा कल्याण हो।
वशिष्ठ जी राजा के निर्मल भाव से प्रसन्न हुए। वशिष्ठ जी कहते है कि हे! राजन वैसे जीव मात्र के कल्याण के लिए अनेक मार्ग शास्त्रों मे वर्णित है, मैं तुम्हे सबसे उत्तम मार्ग बताता हूँ, जिसके करने से तुम्हारा कल्याण होगा तथा श्री हरि की भक्ति भी प्राप्त होगी।

उस मार्ग का नाम है “एकादशी”। एकादशी व्रत सबसे उत्तम माना गया है।

मुनिवर राजा को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी, जोकि आमलकी एकादशी के नाम से विख्यात है, कि कथा सुनाते है।

“आमलकी एकादशी”

प्राचीन काल में एक वैदिश नाम का नगर था। जहाँ सभी वर्णो के लोग खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। ऐसा कहा जा सकता है कि उस नगर मे लगभग – लगभग कोई भी दुराचारी न था और ना ही कोई नास्तिक था। उस नगर में चैत्ररथ नामक चंद्रवंशी राजा राज्य करता था। राजा विद्वान तथा धार्मिक कार्यो में बढ़ चढ़ कर अपना सहयोग दिया करता था। और कहते है ना कि जैसा राजा वैसी प्रजा। नगर के लोग भी बहुत प्रज्ञावान थे और अपने राजा की भांति ही धार्मिक कार्यों में उनकी रुचि थी।
सभी नगर वासी श्री नारायण की भक्ति करते थे।

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी वाले दिन राजा सहित पूरी प्रजा ने एकादशी का व्रत किया। सभी ने मंदिर में जाकर विधि विधान से भगवान श्री नारायण की पूजा करी। रात्रि में सभी ने मिलकर संकीर्तन किया और आमलकी एकादशी की कथा सुनी।

उसी समय एक बहेलिया वहाँ आया। वो बहुत दुराचारी था तथा अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण जीव हत्या से करता था। लेकिन उस दिन वो बहुत थका हुआ और पूरे दिन से भूखा भी था। भूख को शांत करने लिए वो मन्दिर में कुछ खाने के लिए मंदिर के बाहर वही रुक गया। मंदिर में उस समय आमलकी एकादशी की कथा और उसका माहात्म्य सुनाया जा रहा था। उस बहिलये ने भी वो कथा सुनी और फिर वो उसके बाद वो वहां से प्रशाद लेकर अपने घर को आ गया। उस दिन उसका जाने-अनजाने एकादशी का व्रत हो गया।

कुछ दिन पश्चात ही उस बहिलये की मृत्यु हो गयी। उस बहिलये ने इतने पाप किये थे कि उसको नर्क का टिकट तो पक्का ही था। लेकिन उसने भगवान श्री हरि की प्रिय एकादशी का व्रत किया था। अनजाने में ही सही, उसका पूण्य तो उसको मिलना ही था। उसका जन्म राजा विदुरथ के घर हुआ। उसका नाम वसुरथ रखा गया। बड़ा होने पर वह चतुरंगनि सेना सहित धन्य-धान से युक्त होकर 10 ग्रामों का संचालन भी करने लगा।
वसुरथ भगवान श्री हरि का भक्त था और प्रत्येक एकादशी का व्रत भी किया करता था।

एक बार वसुरथ जंगल विहार के लिए गए। लेकिन बीच जंगल पर जाने पर उन्हें महसूस हो गया कि वह रास्ता भटक गए हैं। क्योंकि वो थक भी चुके थे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और आराम करने लगे। तभी वहां से कुछ डाकू गुजरे। डाकू ने वसुरथ से बहुत घृणा करते थे। क्योंकि वसुरथ ने उन लोगो को देश निकाला दिया हुआ था, जिसके कारण, डाकू वसुरथ को मारने के लिए आगे बढ़ने लगे। वो वसुरथ के ऊपर अस्त्र शस्त्र से प्रहार करने ही लगे थे, लेकिन सभी अस्त्र शस्त्र वसुरथ को छूते ही नष्ट हो जाते। इतने में ही वसुरथ के शरीर से एक बहुत तेज प्रकाश पुंज उत्तपन्न हुआ। वो प्रकाश ओर कोई नहीं बल्कि साक्षात माता एकादशी थी। माता ने सभी डाकुओं का समूल नाश कर दिया। जब वसुरथ को होश आया तो उसने देख कि सभी डाकू मृत अवस्था मे पड़े थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे और किसने किया।

लेकिन तभी आकाशवाणी होती है कि हे! वसुरथ तुम श्री नारायण के अनन्य भक्त हो। इन डाकुओं का नाश माता एकादशी ने किया है।
वसुरथ को बहुत हर्ष हुआ और श्री नारायण , नारायण नारायण जपते अपने नगर वापिस आ गए।

विधि :- इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा का बहुत महत्व है। पुराणों के अनुसार आँवला भगवान श्री हरि के मुख से उत्तपन्न हुआ है। यदि आपके यहाँ आँवले का वृक्ष नही भी है तो आप अपने मंदिर में श्री नारायण जी की तसवीर/मूर्ति पर आँवला अर्पित करें तथा धूप-दीप आदि से श्री नारायण की पूजा करें।

तो दोस्तों! देखा जाए तो सभी एकादशियों का सार है कि अगर आपने भगवान को एक बार पकड़ लिया तो आप भले ही भगवान को भूल जाओ पर वो अपने भक्तों को नही भूलते और नाही उनका साथ छोड़ते।

वैसे तो उस बहेलिये के पाप बहुत थे लेकिन उसने अनजाने में ही सही श्री हरि की प्रिय एकादशी का व्रत किया। और गीता का सार भी तो यही है कि कर्म करे चल , फल की चिन्ता छोड़, जब कृष्ण शरण मे चले ही गए, तो किस बात की चिंता है। सब शुभ होगा। आप सभी को आमलकी एकादशी की बहुत बहुत शुभकामनाएं। भगवान श्री हरि की कृपा आप पर बनी रहे।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे।।

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