जय श्री राधे
जय श्री कृष्ण
“अपरा एकादशी”
युधिष्ठिर जी महाराज ने कहा – हे प्रभु ! ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है ? तथा उसका महात्म्य क्या है? कृपा कर ये सब मुहे विस्तारपूर्वक बतायें। श्रीकृष्ण महाराज युधिष्ठिर जी को ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष की एकादशी की कथा सुनाते है।
अपरा एकादशी कथा
महिध्व्ज नामक एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। स्वभाव से अत्यंत उदार – सहज – दयालु -सहिष्णु – धर्मात्मा के राज्य में सभी राज्य के नागरिक सुख पूर्वक निवास कर रहे थे। राजा का छोटा भाई भी था जिसका नाम वज्रध्व्ज था और वह अत्यंत ही क्रूर-अधर्मी तथा अन्यायी था। बड़े भाई की प्रजा में लोकप्रियता से द्वेष करता था और उसी द्वेष के कारण आखिर एक दिन मौका देखकर इसने ऐसा कर्म किया जिसका कल्पना भी असम्भव थी। वज्रध्व्ज ने रात्रि के अँधेरे में राजा की हत्या कर दी और राजा को राज्य से बाहर जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल के पेड़ पर रहने लगी। मार्ग से गुरने वाले हर व्यक्ति वो प्रेत आत्मा परेशान करती।
कुछ समय पश्चात् श्रीहरि की इच्छा से उसी मार्ग से एक महान ऋषि थोम्य उसी पीपल के पेड़ के पास से गुजरे। उन्होंने अपने तपो बल से उस प्रेत आत्मा को भी देखा और ये भी जान लिया कि उसकी ये दुर्दशा कैसे हुई थी।
उदार हृदय वाले ऋषि ने प्रेत की योनी में रहने वाले राजा महिध्व्ज को पेड़ से नीचे उतारा और उन्हें परलोक विद्या का दान दिया। ऋषि थोम्य ने अपनी करुणा से वशीभूत होकर राजा को इस प्रेत योनी से मुक्ति प्रदान करने हेतु अपरा एकादशी का अनुष्ठान किया और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। अपरा एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और राजा ने कृतज्ञता पूर्वक ऋषि थोम्य का धन्यवाद किया और स्वयं दिव्य विमान में बैठक कर अध्यात्मिक लोक में गमन कर गए।
इस कथा का समापन करते हुए भगवान् श्रीकृष्ण जी महाराज युधिष्ठिर से ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी महात्म्य का वर्णन करते है। श्रीकृष्ण जी कहते है ” जैसा कि इस एकादशी नाम अपरा एकादशी है वैसे ही इस अपरा एकादशी की महिमा भी अपरम्पार है। यह एकादशी धन और पुण्यों को देने वाली तथा समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इसका व्रत करते है, उनकी लोक में प्रसद्धि होती है।
अपरा एकादशी के प्रभाव से रक्तबहाव, प्रेत योनी, दुसरे की निंदा आदि से उत्पन्न पापों का नाश हो जाता है, इतना ही नहीं स्त्री गमन, झूठी गवाही, असत्य भाषण, झूठा वेड पढना, झूठा शास्त्र बनाना, ज्योतिष द्वारा किसी को भरमाना, वैद्य बनाकर लोगो को ठगना आदि भयंकर पाप भी अपरा एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते है।
युद्ध क्षेत्र में भागे हुए क्षत्रिय को नरक की प्राप्ति होती है, किन्तु अपरा एकादशी का व्रत करने से उस भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। गुरु से विद्या अर्जित करने के उपरांत जो शिष्य गुरु की निंदा करते है वो अवश्य ही नरक जाते है। अपरा एकादशी का व्रत करने से इनके लिए स्वर्ग जाना संभव हो जाता है।
तीनो पुष्करों में स्नान करने से या कार्तिक माह में स्नान करने से अथवा गंगाजी के तट पर पितरों को पिंडदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वाही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से होता है। बृहस्पति के दिन गोमती नदी मेंस्नान करने से, कुम्भ में श्री केदारनाथजी के दर्शन करने से तथा बदरिकाश्रम में रहने से तथा सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल अपरा एकादशी के व्रत के समान है।
जो हाथी-घोड़े के दान से तथा यज्ञ में स्वर्ण दान (सुवर्ण दान) से प्राप्त होता है, वह फल अपरा एकादशी के व्रत के फल के बराबर है। गौ तथा भूमि या स्वर्ण के दान का फल भी इसके फल के समान है।
पापरूपी वृक्षों को काटने के लिए यह व्रत कुल्हाड़ी के समान है तथा पापरूपी अन्धकार के लिए सूर्य के समान है। अतः मनुष्य को इस एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए। यह व्रत सब व्रतों में उत्तम है। अपरा एकादशी के दिन श्रृद्धापुर्वक भगवान् श्रीविष्णु जी का पूजन करना चाहिए। जिससे अंत में श्री विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
हे धर्मराज ! मैंने यह अपरा एकादशी की कथा तथा इसका महात्म्य लोकहित के लिए कही है। इसके पठन व श्रवण से सभी पाप नष्ट हो जाते है।
व्रत विधि :- जैसा आप श्री भगवान् की सहज सेवा कर सके, उस विधि को अपनाये और एकादशी का व्रत पूरी श्रृद्धा और विश्वास के साथ करें।
तो दोस्तों ! आप सभी को अपरा एकादशी की बहुत बहुत शुभकामनाएं। श्रीकृष्ण जी यही प्रार्थना है कि आप सभो भक्तों के जीवन में भक्ति की उन्नति हो, आप पर सदैव श्रीहरि की कृपा बनी रहे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । ।
बहुत ही बढ़िया समझाया आपने ।