एक कदम प्रभु के चरणों की ओर
राधे राधे सभी को
जगदपिता भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में एक प्रार्थना को लयबद्ध करने का प्रयास किया है, जिसे आप सभी के समक्ष प्रस्तुति का अपराध कर रहा हूं। अपराध इस लिए कि मुझ जैसे अज्ञानी को कविता रचने की कुछ अधिक जानकारी नहीं है, फिर भी लड्डुगोपाल के द्वारा मेरे जीवन को अंधकार से निकाल कर सही मार्ग में डालने व उनके चरणों में बस जाने की लालसा को पंक्तिबद्ध करने का प्रयास किया है।
जैसा कि रामचरितरमानस में तुलसी बाबा ने कहा है –
भाग छोट अभिलाषी बड़ करऊ एक बिस्वास।
-Ramcharitra Manas
पैहहिं सुख सुनी सुजन सब खल करि हहि उपहास।।
मेरा भाग्य छोटा है और इच्छा बहुत बड़ी है, परन्तु मुझे एक विश्वास है कि इसे सुनकर सज्जन सभी सुख पाएंगे और दुष्ट हंसी उड़ाएंगे।
भानिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
-Ramcharitra Manas
सो बिचारि सुनी हहिं सुमति जिन्ह कें बिमल विवेक।।
मेरी रचना सब गुणों से रहित है, इसमें बस जगतप्रसिद्ध एक गुण है । उसे विचारकर अच्छी बुद्धि वाले पुरुष, जिनके निर्मल ज्ञान है, इसको सुनेगें।
अतः मेरी इस रचना में भी जगतपिता परमेश्वर श्रीकृष्ण की स्तुति है अतः आप सभी इसको सहर्ष स्वीकार करें।
तुम मुझे अपने चरणों में छुप जाने दो,
कोई और ठिकाना मुझे भाता नहीं ।
तुम मेरी भटकी नैया की पतवार हो ,
मुझे नैया को खेना भी आता नहीं।।
तुम मुझे अपने चरणों में छुप जाने दो,
कोई और ठिकाना मुझे भाता नहीं ।।
तेरी भक्ति में दुनिया ने पागल कहा ,
तेरी भक्ति ही जीवन का आधार है ।
तेरी बंसी के सुर में मैं खो सा गया ,
तेरी पायल की छम छम झंकार है
तुम जो थामो मुझे यूं ही गिरने ना दो ।
बिन तेरे मुझको चलना भी आता नहीं।
तुम मुझे अपने चरणों में छुप जाने दो,
कोई और ठिकाना मुझे भाता नहीं।।
डूब जाऊंगा मुझको बचा लो मोहन ,
मुझको तेरे सिवा अब सहारा नहीं ।
जिस रण में खड़े बन के तुम सारथी ,
वो बना महारथी कभी हारा नहीं ।।
तुम मुझे यूहीं राहे दिखाते रहो ,
तेरे बिन कोई राहें दिखाता नहीं।
तुम मुझे अपने चरणों में छुप जाने दो,
कोई और ठिकाना मुझे भाता नहीं।।
ढूंढता फिर रहा था मैं सारा जहां,
तेरे जैसा तो साथी मिला ही नहीं।
हारकर भी कभी मैं ना हारा कभी,
थामा तुमने सदा ही गिराया नहीं।
मेरा जीवन तो दुःख के अंधेरे में था ,
दिए तुमने उजाले अंधेरा नहीं।
तुम मुझे अपने चरणों में छुप जाने दो,
कोई और ठिकाना मुझे भाता नहीं।।