जय श्री राधे
जब हम सांसारिक सुखों में अत्यधिक खो जाते है, उस सुख को अंतिम सुख मान बैठते है और उस सुख को प्राप्त करने के चक्कर मे अपनी अधोगति करा बैठते है। और वैसे भी सुख दुख क्षणिक है, ये ना तो सदा टिकते है और ना ही सदा विलुप्त रहते है। ये आते जाते रहते है। वैसे तो सारी सृष्टि भगवान द्वारा ही रचित है, तो अगर उसमें मोह हो भी जाये तो ये कोई बड़ी घटना नही है, माया पति की माया के प्रभाव में ना आयें, ऐसा तो हो ही नही सकता। लेकिन जैसे महासागर को पार करने के लिए बड़े पानी के जहाज की आवश्यकता होती है वैसे ही, इस भवसागर से पार होने के लिए श्री हरि नाम की आवश्यकता है।
संसार तो साधन मात्र है इस भवसागर से पर होने का। तो संसार में मोह में फंस कर अपने मूल उद्देश्य से नही भटकना है।
अपना धर्म नही भूलना है। हमारा धर्म है भगवान की भक्ति, भक्ति और सिर्फ भक्ति। मेरे लिए तो इसके अलावा धर्म की कोई परिभाषा नही है,
लेकिन क्या होता है जब हम धर्म से हट कर कार्य करने लगते है, जानते है जया एकादशी के माध्यम से।
धर्मराज युधिष्ठिर जी भगवान श्री कृष्ण से पूछते है कि हे माधव ! आपने अनेक एकादशी व्रत, उनके लाभ बताए, अब मुझ पर कृपा करके इस माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में बताइए। भगवान श्री कृष्ण कहते है कि ” माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसका सबसे उत्तम फल ये है कि जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत रखता है, उस दिन विशेष श्री विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना करता है, भजन संकीर्तन आदि से भगवान श्री विष्णु जी को रिझाता है, उसे कभी नीच योनि अर्थात भूत प्रेत , पिशाच योनि से मुक्ति मिल जाएगी।
अब भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर जी को जया एकादशी के प्रसंग के बारे में बताते है।
एक बार की बात है, नन्दन वन में भव्य उत्सव चल रहा था, जिसमें देवताओं से लेकर बड़े बड़े दिव्य ऋषि मुनियों का आगमन इस उत्सव में हुआ था। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रहीं थी। उस सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व गायन और पुष्पवती नाम की गंधर्व कन्यां नृत्य कर रही थी। इसी बीच पुष्पवती की नज़र माल्यवान पर पड़ी। पुष्पवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी जिससे कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए।
माल्यवान गंधर्व कन्यां (पुष्पवती) के ऐसे रूप को देख कर सुध बुध खो बैठा और अपनी गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे वो सुर ताल से गिर गया।
दोनो ही अपनी धुन में एक दूसरे को आकृषित कर रहे थे,अपनी भावनाओं को प्रकट कर रहे थे और सभा की मर्यादा तो वो भूल ही चुके थे। लेकिन देवराज इंद्र उनकी इस नादानी को देख रहे थे और क्रोधित भी हो रहे थे। तभी देवराज इंद्र ने उन्हें (पुष्पवती और माल्यवान) नीच पिशाच योनि प्राप्त होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से तत्काल वे दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर एक वॄक्ष पर उनका निवास बन गया।
पिशाच योनि में उन्हें बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ा। बड़े दुख सहन करने पड़े। इसी बीच माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आयी। उस दिन किस्मत से उन्होंने सिर्फ फल आहार ही ग्रहण किया। उस दिन ठंड भी बहुत अधिक थी जिसके वजह से वे रात को सो न पाए, और अगले दिन ठंड के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। वैसे उनकी मृत्यु जया एकादशी का व्रत रखने के बाद हुई। जिसके बाद उन्हें पिशाच योनि मुक्ति मिल गयी और वे स्वर्ग लोक पहुँच गए। स्वर्ग लोक में उन गंधर्व को देख इन्द्र को हैरानी हुई। देवराज इंद्र ने पूछा कि तुम्हें मुक्ति कैसे मिली, तब माल्यवान कहतें है कि ये भगवान श्री विष्णु की जया एकादशी का कमाल है। इन्द्र ये सुन कर प्रसन्न हो जाते है और स्वर्ग लोक में उनका स्वागत करते है।
तो प्रिय भक्तों, इससे हमें यही सिख मिलती है कि फालतू के झंझट में, काम वासनाओं में पड़कर, संस्कारो की मर्यादा तोड़ कर पिशाच/भूत/ प्रेत योनि में जाने से बेहतर है कि भगवान श्री हरि भजन में मग्न रहे।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे