जय श्री राधे
जय श्री कृष्ण
कहते है सज्जन व्यक्ति अपने अच्छे कर्मो से पुण्य अर्जित करता है तथा साथ ही भगवान् की कृपा भी उस पर बनी रहती है। लेकिन असज्जन व्यक्ति बुरे कर्म करता है जिससे उसकी पाप-राशि का निर्माण होता है और वो अपने बुरे कर्म के कारण भगवान् की कृपा से भी वंचित रह जाता, जिसके कारण उसे अगले जन्म में दुखो भरा जीवन जीना पड़ता है और ये सिलसिला अनवरत चलता ही रहता है। ऐसे व्यक्ति का चित भगवन में भी नहीं लग पाता।क्या ऐसा उपाय है जिससे इन पापों से मुक्ति पाई जा सके और हमारा चित श्री हरी के चरणों में ही लगा रहे?
इसका उपाय है एकादशी व्रत। जोकि हर माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की ग्याहरवी तिथि को पड़ती है, इसे ही एकादशी व्रत कहा जाता है। ऐसी ही एक एकदशी है “वरुथिनी एकादशी”।
“आइये जानते इसका महत्व”
युधिष्ठिर जी महाराज पूछते है कि हे वासुदेव ! वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और इसके करने क्या फल प्राप्त होता है?
भगवान् श्रीकृष्ण बोले : राजन ! वैशाख मास के कृष्णपक्ष में वरुथिनी नाम की एकादशी आती है। ये अत्यंत ही शुभ एकादशी है। वरूथिनी के व्रत से ही मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अनेक राजा मेरे लोक को प्राप्त हुए है। इस व्रत को करने पाप-राशि का नाश होता है तथा उसकी दिशा और दशा दोनों सत-कर्म पर लग जाती है। सतयुग में जो फल हजारो-हजारो वर्ष तक तपस्या करने के बाद प्राप्त होता था, वही जो जीव वरूथिनी एकदशी का व्रत पूरी श्रध्दा और मुझमे विशवास रखते हुए करता, उसे वो फल सहज ही प्राप्त हो जाता है।
हे धर्म राज ! घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी श्रेष्ठ है। तिल दान भूमिदान से भी श्रेष्ठ है। तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से अन्नदान को श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है। विद्वान पुरुष कन्यादान को भी उसी समान बताते है। कन्यादान के सामान ही गौ दान है, ये साक्षात् भगवान का कथन है। इन सब दानों से भी बड़ा विद्यादान है। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से विद्यादान के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है।
“वरूथिनी एकादशी की कथा”
युधिष्ठिर जी महाराज वरूथिनी एकादशी की कथा जानने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण जी से आग्रह करते है। धर्म राज के आग्रह पर भगवान् श्रीकृष्ण वरूथिनी एकादशी की कथा को सुनाते है। श्रीकृष्ण जी कहते है कि प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। राजा का व्यक्तित्व बहुत सहज तथा धार्मिक स्वभाव का था।राजा की भगवान् में अटूट श्रध्दा थी। एक बार राजा जंगल में तपस्या करने गये। राजा घोर तपस्या में लीन थे। तभी आचानक एक सूअर आया और राजा को खींच कर भीतर घने जंगल में ले गया।
सूअर के ऐसे व्यवहार से राजा बहुत डर गया और अपनी रक्षा के लिए मन ही मन भगवान् विष्णु जी की प्रार्थना करने लगा। भक्त की पुकार सुन के भगवान् विष्णु प्रकट हुए और सूअर को मार कर राजा के प्राणों की रक्षा करी।लेकिन वो सूअर राजा का एक पैर खा चूका था। जिससे राजा बहुत दुखी था। तब भगवान् विष्णु जी ने राजा से कहा कि तुम दुखी मत हो। मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत रखो और मेरे वारह अवतार मूर्ति की आराधन करो। ऐसा करने से जो तुम्हे आकस्मिक दुःख प्राप्त हुआ है उससे तुम्हे मुक्ति मिलेगी।
राजा ने मथुरा जाकर बहुत ही विधि-विधान से व्रत रख कर पूजा किया। जिसके पुण्य से राजा का पैर ठीक हो गया और वह सुन्दर शरीर वाला हो गया। मृत्यु के बाद राजा को बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जो भी वरूथिनी एकादशी व्रत रखता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष मिलता है।
“व्रत विधि” – जैसे आप सहज में व्रत को पूर्ण कर पायें, वो विधि करिये। बस जितना हो सके, हरी नाम का सुमिरन होता रहे व्रत के दौरान, इससे कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान् श्रीहरि की कृपा भी आप पर बनी रहती है।
तो दोस्तों ! आप सभी को वरूथिनी एकादशी की बहुत बहुत शुभकामनाएं। भगवान् आप सभी के स्वस्थ रखें। ऐसी भगवान् से पार्थना है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे