जय श्री राधे
जय श्री कृष्ण
विजया एकादशी
प्रत्येक एकादशी की भांति इस एकादशी का भी बहुत महत्व है। वैसे सभी एकादशी का पहला और अंतिम फल एक है और वो यही है कि आपकी भक्ति और ज्यादा मजबूत हो।
विजया एकादशी
कथा :-
धर्मराज युधिष्ठर जी महाराज भगवान श्री कृष्ण से पूछते है कि हे ! माधव ये विजया एकादशी का क्या महत्व है उसका क्या फल है, कृपा करके मुझे इसके बारे में बताइये।
श्री कृष्ण जी कहते है इस एकादशी का महत्व मुझसे ज्यादा कौन जानता होगा। युधिष्ठिर जी बड़े आश्चर्य से कृष्ण जी पूछते है कि वो कैसे माधव। तब श्री कृष्ण विस्तार से विजया एकादशी की कथा सुनाते है। श्री कहते है कि “जब मैं त्रेता युग मे मर्यादा पुरुषतम रूप में आया था। तब मैंने भी विजया एकादशी व्रत किया था।
युधिष्ठिर जी कहते है कि हे ! प्रभु हम तो आप को पाने के लिए व्रत रखते है लेकिन आपने व्रत रखा, इसके पीछे क्या लीला है?
तब श्री कृष्ण जी बताते है कि “जब रावण मेरी सीता को छल से हरण कर ले गया था, मन बहुत दुखी था कोई राह नहीं सूझ रही थी किस दिशा में कहां सीता को ढूंढा जाए। लेकिन समय अनुकूल हुआ, सीता की खोज सही राह पर चल पड़ी, पहले जटायु का मिलना, फिर सुग्रीव से मित्रता, हनुमान जी द्वारा सीता की खोज सम्भव हो पाई। इतने सब होने के बावजूद भी मैं असहाय था। क्योंकि सामने विशाल समुद्र था, अपनी सेना को उस पार ले जा पाना, मुश्किल दिख रहा था, क्या उपाय किया जाए, समझ नहीं आ रहा था। फिर लक्ष्मण से पूछा कि भाई उस पार जाने के लिए क्या उपाय किया जाए। इस पर लक्ष्मण बोले कि हे! प्रभु आप तो अंतरयामी हो, आपसे क्या ही छूपा है,क्योंकि आप मुझे निमित बनाने चाहता हो, मैं बहुत भाग्यशाली हूँ।
लक्ष्मण जी कहते है कि यहाँ से कुछ ही दूरी पर बकदाल्भ्य मुनि का आश्रम है उनसे हम अपनी समस्या के समाधान का उपाय पूछते है।
मैं और लक्ष्मण मुनि के आश्रम पहुंचते है। हम अपनी सारी परेशानी मुनि के सामने रखते है, तब मुनि इसका एक उपाय बताते है , मुनि कहते है कि हे राम आप मर्यादा पुरुषतम है, कुछ दिन पश्चात फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आप विधि पूर्वक व्रत करें। आपके कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होंगे।
मैंने एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और विशवास के साथ किया। और परिणाम तो तुम जानते ही हो धर्म राज। न केवल हमारी सेना समुद्र के उस पार बड़ी सरलता जा पाई बल्कि रावण का अंत भी हुआ।
ऐसा प्रभाव है फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का।
इसलिए मैं तो इसे विजया एकादशी कहूँगा।
विधि :-
कथा का वर्णन करने से पहले इसके पूजा विधान पर चर्चा कर लेते है। विजया एकादशी व्रत की पूजा में सप्त धान रखने का विधान है। स्नान आदि से निवृत होकर पूजा करने से पहले एक वेदी बना कर उसमें सप्त धान रखें। वेदी पर जल कलश रखें तथा अशोक या आम के पत्तो से सजाएं। अब इस वेदी पर भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पीले पुष्प, ऋतु के फल अर्थात जिस मौसम जो फल अधिक मात्रा में बाजार में मिल जाता है, वो फल ले सकते है, तथा तुलसी आदि समर्पित करके धूप-दीप से आरती उतारें। व्रत की सिद्धि के लिए देशी गाय के घी से अखण्ड दीपक जलाएं।
इसकी एक सूक्ष्म विधि भी है, जैसी आपकी व्यवस्था हो , मतलब आप ऊपर बताई गई विधि में से जितना कर सकते है उतना करें, अपने सामर्थ्य अनुसार। और इसमें आप ये ना समझियेगा कि हमने पूजा का विधि विधान पूरा नहीं किया , व्रत का फल मिलेगा या नहीं।
आपकी उसकी चिंता न करें। भगवान सिर्फ और सिर्फ भाव के भूखे है। याद नहीं क्या कर्मा बाई की खिचड़ी, विदुरायीं का फीका साग, शबरी के वो झूठे बेर।
आप जितना सामर्थ्य अनुसार कर पाओ उतना करो उसमे कोई बंधन नही है कि जैसा बताया वैसा करोगे तभी फल मिलेगा। आप भाव से ठाकुर जी की सेवा करते हुए व्रत शुरू करें बाकी अपने ठाकुर जी देख लेंगें। बोलिये कृष्ण कन्हिया लाल की जय।
तो दोस्तों! प्रभु श्री राम जी की ये लीला हमें यही प्रेरणा देती है कि हम कितने भी बड़े आदमी बन जाएं, हमें अपना विन्रम भाव नहीं छोड़ना। हमें मुश्किल की घड़ी में अपने श्रेष्ठ जनों का विमर्श अवश्य लेना चाहिए।
और अंत में आपको एकादशी बहुत शुभकामनाएं। आपके जीवन में भक्ति की उन्नति हो, भगवान की कृपा आप बनी रहे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे