इस अध्याय में हम जानेंगे अर्जुन की एक और दुविधा, कि मनुष्य अंत समय में कैसे श्री कृष्ण यानि की भगवान को प्राप्त होता है.
यह दुविधा हमारी भी होगी. इसका उत्तर श्री कृष्ण अर्जुन को देते है.
दोस्तों हम और आप श्रीमद गीता ज्ञान के सागर में बहते हुए काफी आगे आचुके है और इसी के साथ यह ज्ञान सागर और गहरा होता जायेगा हो सकता है आप दुविधा में आजाये लेकिन घबराइयेगा नहीं श्री कृष्ण आपके हर प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगे.
आप जब उनके विश्वास के साथ जीवन जीने लगेंगे आपके असंभव कार्य भी सफल हो जाएगे यह मेरा विश्वास ही नहीं मेरा अनुभव भी है.
प्रभु के नाम के साथ शुरू करते है इस अध्याय का ज्ञान-
जय श्री कृष्ण
राधे राधे
श्री कृष्ण अर्जुन के प्रश्न का उत्तर देते हुए बताते है कैसे मनुष्य अपने अंत समय में “मोक्ष अर्थार्त श्री कृष्ण” को प्राप्त होता है. श्री कृष्ण और कोई नहीं “परब्रह्म” है और जो उन्हें मानव समझने की चेष्टा करता है वो अपना तीनो लोको में नाश ही करता है.
श्री कृष्ण बताते है ब्रह्म का अर्थ है अक्षय जिसका कभी अंत नहीं होता और कर्म वो होता है जो इच्छाओ को त्याग कर निष्काम भाव से करा जाता है.
आगे बताते है अधिभूत वो है जो पल भर या कुछ क्षण के लिए होता है जैसे कि हम और यह दुनिया.
अधिदेव वो होता है जो अक्षय है अर्थात अविनाशी जिसका किसी भी लोक में नाश संभव नहीं है, यह सिर्फ श्री कृष्ण ही है जो कि परम सत्य और अनंत है.
अतः इसका अर्थ दोस्तों यह है जो अपने अंत समय में श्री कृष्ण का नाम जप करते हुए अपनी देह त्यागता है वही श्री कृष्ण को प्राप्त होता है. आगे वह बताते है कि कौन उनको स्मरण कर पाता और कैसे वो अपने देह का त्याग करता है.
अंत समय में मन जिस भाव में होता है यानि कि जो सोचता है उसी के अनुसार अगला जन्म पाता है. ऐसा संभव सिर्फ शांत चित योगी ही कर सकता है. हमारे जैसे मोह माया से ग्रस्त व्यक्ति कदापि नहीं.
श्री कृष्ण कहते है ऐसा योगी बनना आसान नहीं इसके लिए हर समय कृष्ण नाम जप मन में चलते रहना चाहिए. ऐसा योगी व्यक्ति अपने कर्म के समय में भी भगवान् नाम जप करते हुए सभी कर्मो को पूर्ण करता है. ऐसे योगी इतने ज्ञानी होते है और पूर्णया आत्मा हो जाते है कि उन्हें कृष्ण वेदो के ज्ञानिओ से भी श्रेष्ठ बता रहे है.
भगवान् कहते है हे! कुंती पुत्र अर्जुन, ऐसे योगी को अंत समय मैं निश्चित करता हूँ कि वो मुझे ही प्राप्त हो.
दुखो का घर दुखालय और इसमें बार बार जन्म लेना
यह दुनिया श्री ब्रह्मा जी द्वारा रची गयी है जो कि उनके सिर्फ 1 दिन (अर्थार्त हमारे धरती का 4.32 अरब साल है) के बराबर बनी रहती है और जब श्री ब्रह्मा जी की रात होती है तो उनके सोते ही सब उनमे प्रलय के द्वारा वापस समा जाता है.
जो इस अवधि के अंदर श्री कृष्ण को समझलेता है वह ब्रह्मा में समाने से पहले ही श्री कृष्ण को प्राप्त हो जाता है और जो व्यक्ति रह जाते है वह इसी धरती के जन्म मरण में घूमते रहते है.
देह त्यागने का सही समय
भगवान् के अनुसार देह त्यागने का सही समय शुक्ल पक्ष (जिसमे चन्द्रमा बढ़ता है) में दिन का समय है इसी समय में मृत्यु से व्यक्ति की आत्मा श्री कृष्ण को प्राप्त होती है और जिसकी मृत्यु रात के समय घटते चन्द्रमा की अवधि में हो उसे दोबारा जन्म लेना पड़ता है.
इसी को ओर विस्तार से समझ कर इस अध्याय का समापन करते है.
दोस्तों कुछ मित्रों का कथन है भक्ति बुढ़ापे का काम है तो मैं यहाँ थोड़ा उनकी बात का कटाक्ष करना चाहूँगा और कोशिश करुगा कि वह श्री कृष्ण की बात को समझ कर सही मार्ग चुनले.
जैसा कि श्री कृष्ण ने बताया कि अंत समय के भाव अनुसार ही हम दूसरा जन्म पाते है और उस समय भाव, प्रेम भक्ति का हो तो हम जन्म से मुक्ति पा लेते है और श्री कृष्ण को प्राप्त कर लेते है.
अब अंत समय आप सोचेंगे कि देह त्यागना हमारे हाथ नहीं यह तो खुद हो जाने वाली क्रिया है.
परन्तु श्री कृष्ण के ज्ञान आधार से हम समझे तो अंत समय में जो योगी होता है वो जानता है किस समय उसे देह त्याग करना है और यह उसके लिए सभव भी होता है कि वो अंत समय कि अवधि में अपने जाने का समय चुन सकता है.
अब जो व्यक्ति कहते है बुढ़ापे में भक्ति करना सही है जवानी तो भोग क लिए है.
उनकी सोच गलत है क्योकि अध्याय 18 में श्री कृष्ण इस बात को बताते है कि जो मेरे भक्त है उनकी मृत्यु के समय हो सकता है वो मेरा ध्यान ना कर पाए जिसके कारण वो मुझे प्राप्त नहीं हो, लेकिन वो भक्त मुझ पर विश्वास कर अनंत भक्ति से शुद्ध हो जाता है और उसके अंत समय में उसके ह्रदय में, मैं खुद वास कर अपना नाम जप उससे कराता हूँ और निश्चित करता हूँ कि मेरा भक्त हर अवस्था में मुझे ही प्राप्त हो.
लेकिन जो भक्ति ही मतलब में आकर बुढ़ापे में शुरू करने का प्रयास करे वो कृष्ण को प्राप्त नहीं कर सकता. क्योकि उसका ह्रदय पुरे जीवन काल तो भोगो में रहा और अंत समय वो भक्ति से इतनी शुद्धता नहीं पा सकता कि श्री कृष्ण उसके ह्रदय में वास कर पाए.
तो दोस्तों चुनना आपको है सही और गलत. भगवान ने मानव प्रेम में यह रहस्यमय ज्ञान हमे श्रीमद भगवद के रूप में दिया है.
आगे अध्याय में यह ज्ञान ओर कठिन होता जायेगा लेकिन मेरा प्रयास है इसको कुछ आसान शब्दों में आप तक लाऊ. अगर कोई त्रुटि हुई हो तो सभी से विनम्र निवेदन है माफ़ी प्रदान करे.
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
— Kali-Saṇṭāraṇa Upaniṣad
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे।।
गुरु आशीर्वाद-
श्री अमोघ लीला प्रभु जी
प्रेरणादायक-
श्री आशुतोष बंसल
लेख सहायक-
श्री अमित राजपूत
पिछला अध्याय यहाँ पढ़े- अध्याय -7 “ज्ञान विज्ञान योग”
अगला अध्याय यहाँ पढ़े- अध्याय- 9 “राज विद्या राज गुह्यं योग”
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