“मैंने सब चिराग बुझा दिए, तेरा एक चिराग जला लिया”
तेरी शान तेरे जलाल को, मैंने अपने दिल बसा लिया। बहुत ही सुंदर पंक्तियां है इस भजन की, श्री विनोद अग्रवाल जी के द्वारा गाया गया भजन। कुछ इससे और श्रीमद्भागवत गीता से जानने की कोशिश करते हैं कि इसका अर्थ क्या है।
जलाल का अर्थ है “प्रकाश”। भगत कहता है कि मैंने तेरे शान तेरे प्रकाश को (अपने कन्हिया के सौंदर्य को, उनके तेज को) अपने दिल में बसा लिया और फिर मैने सब चिराग बुझा दिए तेरा इक चिराग जला दिया। कहना का अर्थ है “एक साधे सब सधें।
क्या अभी भी नही आया समझ? चलो विस्तार से चर्चा करते है।
हम जानते ही हैं कि हमारे सनातन धर्म में बहुत से देवी देवता हैं जो कि सभी पूजनीय हैं लेकिन यह भी सच है कि हमारी साधना एक दीपक में लग जाए तो सब अंधेरे दूर हो जाते है हैं, क्योंकि अलग-अलग दीपक जलाएंगे तो कब कौन सा भुज जाए आप जानते भी नहीं लेकिन एक दीपक पर टिके रहेंगे तो उसे भुजने नहीं देंगे। यहाँ दीपक से आशय हमारी ‘श्रद्धा” से है।
इसमें किसी देवी-देवताओं का खंडन नहीं है। वह सभी पूजनीय हैं और पूजनीय रहेंगे। हम जानते हैं कि हमारे शास्त्रों के अनुसार हम किसी भी एक देव मंत्र का उच्चारण करते हैं तो ही वह सिद्ध होता है। यदि आप अलग-अलग मंत्र रोज करेंगे तो उसमें से कोई भी सिद्ध नहीं होगा। तो हमें अपनी श्रद्धा से एक ही मंत्र का जाप करना चाहिए।
हमने अपने जीवन में दो शब्द सुने हैं एक आस्तिक और एक नास्तिक। आस्तिक का अर्थ है जो भगवान में विश्वास रखता है और नास्तिक वह होता है जो भगवान में विश्वास नहीं रखता है लेकिन हमने एक शब्द ओर सुना है जिसका वर्णन वेदों में भी है “श्रद्धा भक्ति” अर्थात भाव भक्ति क्योंकि श्रद्धा में ही भाव होता है और यह शक्ति सिर्फ ईश्वर ने इंसान को ही दी है क्योंकि सिर्फ श्रद्धा ही है जो हमें मूर्ति में भी भगवान का साक्षात्कार कराती है।
“तेरी आस ही मेरी आस है, तेरी धूल मेरा लिबास है
अब मुझे तू अपना बना भी ले, मैंने तुझको अपना बना लिया”
हम किसी देवी देवता का खंडन नहीं कर रहे, हमें देवी देवताओं से तो प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें अपने इष्ट मिल जाए जिन्हें हम सबसे ज्यादा मानते हैं और पूजते हैं।
तो हमें भगवान अपना कब बनाते हैं जब हम किसी एक के प्रति समर्पित होते हैं, तो हमें एक का होना है, तभी तो वह भी हमें अपना कहेंगे। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है हमारे नरसी मेहता जी। उन्होंने भगवान शिव की उपासना की, उन्हें प्रसन्न किया। महादेव प्रत्यक्ष नरसी जी के सामने आये और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा और पता है नरसी जी मांगते क्या है, नरसी जी महादेव जी से कहते है ” मोकूँ ओर कछु न चाहिए, श्रीराधा कृष्ण मिलिए”।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि उन्हीं से सभी देवी देवताओं को विस्तार होता है तो क्या हमारे श्रीकृष्ण जी इतने भी सामर्थ्यवान नहीं की वह आपकी जरूरतों को पूरा कर सकें।
लोग इतने लालची हो जाते हैं कि भगवान अगर जिंदगी में कुछ कांटे दे तो मिनट से पहले ही भगवान बदल देते हैं लेकिन वह यह नहीं जानते कि यहीं से तो शुरुआत होती है उनकी भक्ति की परीक्षा की। पर लोग क्या करते हैं अपने इष्ट को बदल देते हैं क्योंकि ऐसे भक्त श्रद्धा-भक्ति नहीं करते हैं बल्कि अपने भगवान से व्यापार करते हैं। अगर उनके व्यापार की पूर्ति नहीं होती तो अगले ही दिन अपने देवी देवता बदल देते हैं। तो अपनी शक्ति को श्रद्धा भक्ति में बदलिए और श्रीकृष्ण का दामन थाम लीजिए। भगवान गीता में स्वयं कह रहे हैं कि मैं अपने भक्तों को ना कभी गिरने देता हूँ और ना ही हारने देता हूँ। हमेशा भक्तो का हर परिस्थिति में साथ देता हैं क्योंकि उनके भक्तों की हार वह अपनी हार मानते हैं महाभारत के युद्ध में आप यह देख भी चुके होंगे।
दोस्तों आज हम जीवन में भागे जा रहे हैं। कोई पैसे के पीछे कोई नाम के पीछे। क्या आप लोगों ने कभी यह नहीं सोचा कि आप यहाँ क्या करने आये हैं क्या सिर्फ भोग करने ?क्या आपने सोचा हैं मरने के बाद आप कहा जाएंगे ? शायद आपके पास इसका उत्तर नहीं होगा, क्या आप जानते है आपकी फाइनल डेस्टिनेशन क्या है, आपकी आत्मा की भूख क्या है? आपकी फाइनल डेस्टिनेशन और आपकी आत्मा की भूख है भगवन भजन और इस जीवन के मृत्यु चक्र से बाहर आने के लिए सिर्फ ऐसा सामर्थ “एक ही भगवान श्रीकृष्ण” में हैं। उन्हीं के भजन से आप इस दुनिया के भवसागर से बाहर निकल सकते हैं बाकी सभी देवी देवता तो इस दुनिया के चक्र और भवसागर में ही फंसे है।
श्रीकृष्ण ने ही सभी देवी-देवताओं को शक्तियां दी हैं कि वह आपके जीवन की रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ यह सब पूर्ण कर पाएं और श्रीकृष्ण के पास आसानी से ना जा पाएं क्योंकि वह इतने कृपालु दयालु हैं कि वह भक्तों के वश में हो जाते हैं तो इसलिए वह अपनी भक्ति किसी को आसानी से नहीं देते हैं। जो श्रीकृष्ण को अपने जीवन का साया बनाएं और उस साये के साथ आगे बढ़े तभी वह आपको गिरने से बचा पाएंगे और जीत की ओर ले जाएंगे।
“छायीं काली घटाएं तो क्या, उसकी छतरी के नीचे हूँ मैं,
आगे आगे वो चलता मेरे, मेरे मालिक के पीछे हूँ मैं।
उसने पकड़ा मेरा हाथ है , तो बोलो डरने की क्या बात है।
सांवरा जब मेरे साथ है , तो बोलो डरने की क्या बात है।”
कृष्ण त्रिकालदर्शी हैं, आने वाले कल को जानते हैं। तो अब आप देख लीजिए अपने जीवन रूपी नैया की पतवार उनके हाथ में देनी है या नहीं देनी है।
“हरी बोल”
“हरे कृष्ण.. हरे कृष्ण.. कृष्ण कृष्ण हरे हरे..
हरे राम.. हरे राम.. राम राम हरे हरे..”
प्रेरणादायक:
श्री विनोद अग्रवाल जी
श्री अमोघ लीला प्रभु जी
लेख सहायक:
श्री अमित राजपूत
Bohot acha