अध्याय- 6 “आत्म संयम योग” (श्रीमद भगवद गीता सार: जीवन का आधार)

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राधे राधे

दोस्तों इस भाग में हम जानेंगे कैसे हम ध्यान (Meditiation) से अपनी आत्मा को जान सकते हैं। भगवान आत्म ध्यान से पहले बताते हैं कि व्यक्ति को अपनी इच्छाएं छोड़ कर कर्म करना चाहिए क्योकि ऐसा ही मनुष्य परमगति को प्राप्त होता हैं अर्थार्त अपनी Final Destination तक पहुँचता हैं। इस अध्याय में श्री कृष्णा अर्जुन को यही समझाते हैं।

आत्मा से मिलन

श्री कृष्ण के अनुसार हमे योग के रास्ते पर कामनाये त्याग कर आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन यह सुनकर आपके दिमाग में आएगा कि अगर कामनाये ही त्याग देंगे तो जियेंगे कैसे ? इसका जवाब भी श्री कृष्ण देते हैं।

भगवान कहते हैं कि जब व्यक्ति किसी मार्ग पर आगे बढ़ता हैं और उसके मन में अगर कामनाये होती हैं तो वो अपना कोई भी कर्म बिना चिंता पूरा नहीं कर पता। दोस्तों यहाँ यह ध्यान देने लायक बात बता रहें हैं। जब भी हम कुछ काम से होने वाले फायदे के बारे में सोच कर कुछ भी कार्य करते हैं तो वो पूरा नहीं कर पाते या तो सोचते रह जाते हैं या उसको शुरू ही नहीं कर पाते।

इसलिए ही भगवान् ये ज्ञान अर्जुन को देते हुए कहते हैं कि अपने कर्म को करने से पहले, हे! कुंती पुत्र अर्जुंन अपनी कामनाओ को त्याग कर इस योग मार्ग पर आगे बढ़। इसमें नियति और परमात्मा अर्थार्त कृष्णा उसका साथ अवश्य ही देंगे।

आपका दूश्मन कौन?

श्री कृष्णा बताते हैं हमारे दूश्मन या मित्र हमारे आस-पास के लोग नहीं बल्कि हम खुद ही हैं। जानते हैं कैसे ? भगवान बताते हैं कि जो व्यक्ति दुसरो की बातो में आकर अपना उचित और अनुचित सोचता हैं वह व्यक्ति अपना ही स्वयं का दूश्मन हैं क्योंकि सरल चित का व्यक्ति किसी के बहकावे में नहीं आकर अपने खुद के चिंतन से हर समस्या को सुलझाता हैं और अपने सही गलत का फैसला लेने में सक्षम होता हैं।

लेकिन अगर आप ऐसे नहीं हैं तो दोस्तों अभी देर नहीं हुई आप श्री कृष्णा के बताये मार्ग पर अभी भी चल सकते हैं क्योंकि शायद अगला जन्म किसी पशु योनि का मिले तो आप भगवान भक्ति और इस मार्ग पर नहीं चल पाएंगे। फैसला आपका हैं मेरे मित्रों।

स्वाधीन (Independent) कैसे बने!

यहाँ दोस्तों आपको अंग्रेज़ो से आज़ादी नहीं पानी क्योंकि वो हम कभी पा ही नहीं सकते जब तक भारत देश में “जय चंद” जैसे गद्दार लोग हैं जिन्हे अपने ही भगवान् के होने ना होने का प्रमाण चाहिए।

भगवान् श्री कृष्ण यहाँ हमे अपनी इन्द्रिओ से आज़ादी के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनके अनुसार जो अपनी इन्द्रिओ की गुलामी में सिर्फ उनकी भोग की जरूरतों के लिए काम करता हैं वह व्यक्ति व्यर्थ ही जीता हैं क्योंकि ऐसे व्यक्ति को किसी भी लोक में संतुष्टि नहीं मिलती।

विषय भोग तो सिर्फ पल भर के होते हैं। उदहारण से समझाऊ तो आप आज शायद लाख रुपये महीना कमाते होंगे लेकिन आपकी ये कमाने की चाह कभी ना ख़तम होगी ना कम होगी। आप निरंतर कमाने के लिए भागते रहेंगे, एक समय आएगा कि आप इस दुनिया की हर चीज़ हांसिल कर लेंगे और फिर सब यहीं छोड़ नर्क की ओर निकल लेंगे। जी हां आपके चाहने वाले चार दिन आंसू भहा कर आपके मृत्यु शैया पर आप ही के कमाए चार रुपये चढ़ाने में कतराएंगे। “तो सोचिये आप क्या क्या कर रहे है।”

विषय पर आते हैं भगवान स्वाधीन बनने के सरल उपाए बताते हैं कि हमे अपना मन व शरीर अपने वश में करना हैं यह सबसे सरल और उत्तम मार्ग हैं। आपका दिमाग में चल रहा होगा कि भाई यही नहीं होता हमसे। घबराइए मत अर्जुन का भी यही प्रश्न था श्री कृष्ण से। भगवान बताते हैं इसके लिए हमे ध्यान योग की सहायता लेनी चाहिए ध्यान योग वो मार्ग हैं जो कठिन से कठिन परिस्थिति में आपको हर मुसीबत के चक्रव्यूह से बहार निकलने में सहायता करता हैं।

ध्यान (Meditiation) कैसे करें।

ध्यान में बैठना एक उत्तम विषय हैं, इसको ऐसे ना सोचे की यह बहुत सरल हैं। इसको पाने के लिए आपको बहुत संयम की आवश्यकता पड़ती हैं।

ध्यान में बैठने के लिए आपको एक साफ़ और शांत स्थान चाहिए होता हैं उस स्थान पर आप किसी भी समतल जगह बैठ कर ध्यान योग कर सकते हैं। ध्यान योग को करने के लिए शरीर को स्थिर कर किसी और दिशा में आपको नहीं देखना और सिर्फ आँखे नाक के आगे के हिस्से पर एकाग्र कर भगवन ध्यान में खो जाना हैं।

जो योगी ध्यान योग से अपने मन पर काबू पा लेता हैं वह अपनी आत्मा के स्वरुप को जान पाता हैं। यहाँ श्री कृष्ण उन धूर्त लोगो के लिए बताते हैं जिन्हे भगवान नहीं दिखते। वह अगर योग की सिद्धि प्राप्त करले तो वह अपनी आत्मा के स्वरुप में भगवान् के दर्शन पा सकते हैं। इसलिए फेसबुक पर भगवान की निंदा करने के बजाये दिमाग के रोगिओं को ध्यान लगाना चाहिए। इससे भगवान नहीं भी दिखे तो शायद जीवन में कुछ अच्छा काम ही करने योग्य बन जाये।

ध्यान योग की सिद्धी किसे मिलती हैं।

दोस्तों ध्यान योग कोई ऐसी वस्तु नहीं जिस पर किसी का कॉपीराइट हो। यह एक ऐसी सिद्धि हैं जो अपने संयम से हर कोई प्राप्त कर सकता हैं। इसलिए अति से बचे क्योंकि किसी भी कार्य को अति में करना उस कार्य का नष्ट होना हैं। अर्थार्त –

“अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।”

ऊपर दिए दोहे से तात्पर्य हैं की- न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

इसको और समझते हैं – श्री कृष्ण बताते हैं की ध्यान योग उनके लिए ही आसान हैं जो निष्ठा से इसको करते हैं अर्थात विश्वास के साथ संकल्प कर इसको नित-नियम करते हैं।

दोस्तों यहाँ ध्यान रखने वाली बात यह हैं कि आपको इसको करना हैं मन की शांति के लिए। अगर इसको कुछ पाने की काम भावना से करोगे तो ध्यान रहे ज्यादा दिन इस मार्ग पर चल नहीं पाओगे।

सबसे बड़ा लाभ क्या?

ज्यादा तर सब लोग इसको समझेंगे पैसा या फिर दुनिया के सब सुख सुविद्या कामना ही सबसे बड़ा लाभ व् सुख हैं। पर यहाँ श्री कृष्ण इस तर्क का खंडन करते हुए बताते हैं कि सबसे बड़ा लाभ हैं परमात्मा की प्राप्ति व उसको जान लेना। सांसारिक सुख तो कुछ पल के होते हैं। लेकिन जब व्यक्ति परमात्मा के ध्यान में लग जाता हैं तो यह सुख इस जन्म में तो होता ही हैं और अनंत (infinity/eternal ) तक साथ रहता हैं।

संयोग वियोग क्या हैं?

“कुछ मिलना संयोग हैं।
कुछ छूट जाना वियोग हैं।”

वैसे तो दोनों ही व्यर्थ हैं इसलिए यह माया के सुखो को छोड़ कर हमे “भगवन-ध्यान” में लग जाना चाहिए। भगवान और विस्तार में बताते हैं कि दुनिया की बाते अस्थिर बनाती हैं। आप जो चाहे वो नहीं कर पाते, आप जहाँ ही अच्छे मार्ग चलने की कोशिश करेंगे वही आपको भटकाने वाले छतीसो मिलने लगेंगे लेकिन ये लोग आपके कर्म में सहयता के समय नहीं आएंगे।

इसलिए ही भगवान् कहते हैं ध्यान योग से अपने को जीतिए और सत्कर्म (Positive Work ) कीजिये। हमारे आसपास अनंत चेतना हैं जिसको सिर्फ ध्यान मार्ग पर ही पाया जा सकता हैं और जो यह चेतना हासिल कर लेता हैं वो अनंत सुख व् इस भौतिक जगत के हर सुख कमाने योग्य भी बन जाता हैं। हो सकता हैं आप शुरू में ध्यान योग ना कर पाए लेकिन घबराइयेगा मत भगवान कहते हैं जो मेरा स्मरण कर इस योग में बैठता हैं मै उसकी स्वयं सहायता करता हूँ।

अर्जुन का महवपूर्ण प्रश्न जो शायद आपका भी होगा!

अर्जुन कहते हैं, हे! माधव मन तो इतना चंचल हैं कि इस पर काबू पाना इतना ही मुश्किल हैं जितना सांस या वायु को रोकना। श्री कृष्ण हस्ते हुए उत्तर देते हैं। अर्जुन इसमें कोई संदेह नहीं कि मन बड़ा ही चंचल और आसानी से काबू में नहीं करने वाला हैं। लेकिन अगर तू निरंतर ध्यान योग अभ्यास करे तो इसको काबू करना असंभव भी नहीं। भगवान् के अनुसार जिसे मेहनत से घबराहट ना हो वह हार ही नहीं सकता।

अर्जुन पूछते हैं कि अगर कोई इस मार्ग पर चले और वो माया से प्रभावित होकर भटक जाये तो उसका क्या होगा? क्या वो पापी हो जाता हैं।

भगवान् बताते हैं जो मेरे कहे मार्ग पर चलता हैं और किसी भी कारण आगे नहीं बड़ पाता तो ऐसे व्यक्ति का किसी भी लोक में नाश नहीं होता।

श्री कृष्णा कहते हैं ऐसे व्यक्ति को स्वर्ग प्राप्त होता है जहाँ वो आत्म ध्यान हासिल कर अगला जन्म किसी ऐसे घर में पाता हैं जहाँ उसको सभी योग की सिद्धि मिलती है और अपने पिछले जन्म के ज्ञान को भी नहीं भूलता हैं। ऐसा व्यक्ति भी कई जन्मो के बाद मोक्ष करता है। लेकिन दोस्तों इसके लिए भी आपको शुरुआत तो इसी जन्म में करनी पड़ेगी।

कौन सा योगी श्री कृष्ण को सबसे प्रिये!

श्री कृष्ण को सबसे प्रिये हैं वो व्यक्ति जो अभ्यास करना नहीं छोड़ता यानि कृष्णा के बताये मार्ग पर चलने का प्रयास करता हैं और निरंतर करता ही रहता हैं। ऐसे व्यक्ति को श्री कृष्ण कहते हैं कि वो किसी शास्त्र ज्ञानी सन्यासी से भी मेरे लिए श्रेष्ठ हैं। अर्थात कृष्ण कहते हैं मै ऐसे अभ्यास पूर्ण व्यक्ति के हर दुःख को हर्ता हूँ और उसकी सहायता हर परिस्तिथि में करता हूँ। उनका किसी भी अवस्था में अहित नहीं होने देता फिर उसके लिए मुझे ही क्यों ना प्रकट होना पड़े।

दोस्तों श्री कृष्णा ने इस अध्याय में एक गूढ़ विषय (Secret Topic) जो की ध्यान योग से आत्म का साक्षात्कार करना हैं, हमे समझाते हैं। अगर इस व्याख्या में कोई गलती हो गई हो तो मै श्री भगवान् और आप सबका क्षमा प्रार्थी हूँ।

गुरु आशीर्वाद-
श्री अमोघ लीला प्रभु जी

प्रेरणादायक-
श्री आशुतोष बंसल

लेख सहायक-
श्री अमित राजपूत

पिछलाअध्याय यहाँ पढ़े- अध्याय- 5 “कर्म संयास योग”
अगला अध्याय यहाँ पढ़े- अध्याय -7 “ज्ञान विज्ञान योग”

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One thought on “अध्याय- 6 “आत्म संयम योग” (श्रीमद भगवद गीता सार: जीवन का आधार)

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