कृष्ण उन्हें याद करते और रोते- उद्दव गोपी संवाद भजन

उद्दव गोपी संवाद -भजन
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ये तब कि बात है जब श्री कृष्ण को ब्रज छोड़े काफी समय बीत चुका था। अब कृष्ण को ब्रजवासियों की बहुत याद आती है, कृष्ण उन्हें याद करते, उनके आँखों में आंसू आ जाते है। ये दृश्य देख, श्री कृष्ण के Best Friend उद्धव जी कहते है, कृष्ण आप तो सुख-दुःख इन सब से परे हो, फिर ये कौनसा दुःख है जिसे आप भी नहीं बच पाये।

तब कृष्ण जी उद्धव से सारे दुःख का कारण बताते हैं। उद्धब जी कहते हैं, हे! कृपानिधान आप कहिये की मैं आपकी किस प्रकार सहायता कर सकता हुँ। तब श्री कृष्ण जी कहते है, हे! ज्ञानवान उद्धव जी आप बृज चले जाओ और उन्हें समझाओं की विरह में सब त्यागने से क्या लाभ और हाँ, नंदबाबा और यशोदा मैया की खैर खबर लेते आना।

श्री कृष्ण उद्धव संवाद और सुने भजन गीत

-Credit YouTube.com

उद्धव जी ज्ञान में बहुत निपुण है, उनसे तर्क में कोई नहीं जीत सकता। ऊद्धव जी इसी विशेषता को लेकर बृज की ओर चल पड़ते हैं।

रास्ते में उनकी भेंट गोपियों से होती है, वो उनसे नंदबाबा के भवन का मार्ग पूछते है, तब एक गोपी उनसे पूछती है, क्या आप मथुरा से आये हो? ऊद्धव जी को हैरानी होती है कि इन्हें कैसे मालूम। तब गोपी बताती है कि सिर्फ मथुरा से आने वाला ही नंदबाबा के भवन का मार्ग पूछता है। और कोई नहीं, इतना कह कर गोपी की आँखों में आंसुओ की बाढ़ सी आ जाती है। ऊद्धव चिंता में पड़ जाते है और सोचते है कि इनकी ये दशा अज्ञान के कारण है।

तो ऊद्धव जी गोपियों को ज्ञान का बखान करना शुरू करते है। सभी प्रकार से गोपियों को समझाते है। जप,तप, साधन करने को कहते हैं जिस से उनके सारे दुःखों का नाश हो, उन्हें ब्रह्म ज्ञान की गूढ़ बातें भी समझाते है।

इस पर गोपियों को ऊद्धव पर बहुत तरस आता है और वो उन्हें बहुत भाग्यशाली बोलती है। गोपी कहती है, ऊद्धव जी आप बहुत ही ज्ञान शील है इसमें कोई सन्देह नहीं, आप भाग्यशील है कि आपको कभी प्रेम नहीं हुआ। इतना कह कर गोपी मुस्कुराकर कहती है

“हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप तप और साधन क्या जाने”

-Sri Uddhav Gopi Sanvad

गोपी कहती है, ऊद्धव जी हम वो बंजारने है जो कृष्ण प्रेम एक स्थान से दूसरे स्थान भटकती हैं। हम बंजारनें क्या जाने जप क्या होता है, तप किसे कहते है, हमारी तो एक एक श्वास कृष्ण के लिए है। इसके अतिरिक्त तो हमे कुछ भी पता नहीं।

“हम श्याम नाम की दीवानी
प्रेम के बंधन क्या जाने”

-Sri Uddhav Gopi Sanvad

हे! ऊद्धव आपने हमें प्रेम की बहुत सी मर्यादाओं के बारें में बताया। हम उस के प्रेम में पागल नहीं है जिसे कोई सुदर्शन धारी बुलाता है, कोई कहता है वो तीनों लोको के स्वामी हैं। हम उस माखने चोर और मटकी फोड़, यशोदा के लल्ला से प्रेम है।

“हम ब्रज की भोरी ग्वारिणिया
ब्रह्म ज्ञान की उलझन क्या जाने”

-Sri Uddhav Gopi Sanvad

हम तो बृज की भोली गंवार है, तो हमें ये ब्रह्म की ज्ञान की बातें कहाँ समझ आने वाली है और यदि समझ भी जाएं क्या उससे यशोदानंदन वापिस आ जाएंगे?

“ये तो प्रेम की बात है ऊद्धव
कोई क्या समझे कोई क्या जाने”

-Sri Uddhav Gopi Sanvad

अरे ऊद्धव जी ये प्रेम की बाते है, ये आपके ज्ञान को नहीं समझ सकती, और आपका ज्ञान हमारे प्रेम को नहीं समझ सकता। इसे तो एक प्रेमी ही समझ सकता है।

“मेरे और मोहन की बाते
मैं जानूँ या वो जाने”

-Sri Uddhav Gopi Sanvad

मेरे और प्रियतम की बातें है इसे या तो हम ही जानते है या वो बंसी बाजिया।

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