इसबार की सफला एकादशी दिनांक शनिवार, 9 जनवरी 2021
जय श्री राधे
आप सभी ने श्री वाल्मीकि जी और नारद मुनि जी का वो प्रसंग तो सुना ही होगा। जब नारद मुनि रत्नाकर (श्री वाल्मीकि जी) को कहते है कि “राम राम” जपो, तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे और तुम श्री भगवान के श्री चरणों में विश्राम पाओगे। इस पर रत्नाकर (श्री वाल्मीकि जी) कहते है कि मैं बहुत पापी है, मैं अपने मुख से उन श्री भगवान का पवित्र नाम कैसे लूँ, तो नारद जी उसे मरा मरा… नाम जपने के लिए कहते है।
रत्नाकर इस मरा मरा को जपने लगे, लेकिन वो मरा मरा कब म..रा..म..रा..म..रा..म.. से राम राम राम राम राम हो गया और राम राम जपते जपते वो रत्नाकर से श्री वाल्मीकि जी में परिवर्तित हो गये।
इस प्रसंग का सार कुलमिला के यही है कि श्री भगवान का नाम, उनकी सेवा, उनका चिंतन-मनन चाहें जानबूझकर के हो या अनजाने में, उसका फल श्री भगवान की भक्ति ही है।
ऐसा ही कुछ फल देने वाली है सफला एकादशी-
आइए जानते है क्या सफला एकादशी की कथा।
युधिष्ठिर महाराज श्री कृष्ण से पूछते है हे स्वामीन! पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कैसे किया जाता है। श्री कृष्ण बताते है बड़ी बड़ी दक्षिणा दान देने वाले यज्ञों से भी जो संतोष मुझे प्राप्त नहीं होता उससे कही अधिक फल देने वाली ‘सफला’ एकादशी है इस दिन श्री भगवान् अच्युत (श्री नारायण) की पूजा का विशेष विधान है। इस व्रत को धारण करने वाले को चाहिए कि प्रात: स्नान करके भगवान् की आरती करे उन्हें भोग लगाये। ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन अथवा दान देना चाहिए । रात्रि में जागरण करते हुए संकीर्तन – नाम जाप का बहुत अधिक महत्व होता है। इस व्रत को करने से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है।
इस व्रत को करते हुए मन में यही संकल्प हो और श्री भगवान से यही प्रार्थना हो कि हमारा प्रेम अपने प्रियतम श्री कृष्ण के प्रति ओर बढ़ता जाये, ज्यादा से ज्यादा उनका भजन हो पाए, बस यही मन में संकल्प और प्रार्थना होनी चाहिए।
व्रत कथा
चम्पावती नगरी में एक महिष्यमान नाम का राजा राज्य करता था | उसका बड़ा बेटा लुम्पक दुराचारी कुकर्म करने में लिप्त रहता था। राजा अपने पुत्र से बहुत परेशान थे, थक-हार के पिता ने उसे दण्ड स्वरुप अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। लुम्पक भटकते भटकते एक वन में पहुँचता है। वन में एक पीपल का वृक्ष था जो भगवान् को भी प्रिय था। सब देवताओं की क्रीड़ा-स्थली (खेल का स्थान) भी वहीँ थी। ऐसे पतित पावन वृक्ष के सहारे लुम्पक भी रहने लगा। परन्तु फिर भी उसकी चाल टेढ़ी ही रही ,उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। वह पिता के राज्य में चोरी करने चला जाता था।
एक दिन पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी की रात्रि को उसने लूट-मार व अत्याचार किया लेकिन वो सिपाहियों द्वारा पकड़ा गया, सिपाहियों ने दण्ड स्वरुप उसके वस्त्र उतार कर उसे वापिस वन को भेज दिया। वन में वो बेचारा, एक पीपल वृक्ष की शरण में आ गया। इधर हेमगिरि पर्वत की ओर से बहुत ही ठंडी पवन भी आ पहुँची। लुम्पक के सब अंगो में गठिया रोग ने प्रवेश कर लिया , हाथ पाँव सब अकड़ गए। जब अगले दिन सूर्योदय हुआ तो उसका कुछ दर्द कम हुआ, शरीर का दर्द तो कम हुआ पर पेट का दर्द शुरू हो गया यानि उसको भूख लगने लगी, लेकिन आज वो जीवों को मारने में असमर्थ था और न ही उसमें किसी वृक्ष पर चढ़ने की शक्ति ही बची थी जिससे कोई फल तोड़ कर खा सके।
आख़िरकार कुछ प्रयास करने पर नीचे गिरे हुए फल मिल गये, उन फलों को इकठ्ठा करके पीपल की जड़ में रख दिये और कहने लगा – हे प्रभु ! इन फलों का आप ही भोग लगाइये । मैं अब भूख हंड़ताल पर जा रहा हूँ, मैं इस पापी शरीर को छोड़ दूँगा । मेरे इस कष्ट भरे जीवन से तो मौत ही अच्छी है । ऐसा कहकर प्रभु के ध्यान में मग्न हो गया और रात भर उसको नींद न आईं । अंत समय जानकार रात भर श्री भगवान का स्मरण करता रहा , परन्तु प्रभु ने उन फलों का भोग नहीं लगाया।
प्रातःकाल हुआ तो एक दिव्य अश्व आकाश से उतरकर उसके सामने प्रकट हुआ और आकाशवाणी द्वारा श्री नारायण भगवान् स्वयं कहने लगे , “लुम्पक तुमने अंजाने में सफला एकादशी का व्रत पूरा किया है । उसके प्रभाव से मैं तेरे समस्त पाप नष्ट करता हूँ। अग्नि को जानबूझकर के या अनजाने में हाथ लगाने से हाथ जल जाता है, वैसे ही एकादशी भूलकर रखने से भी वह अपना प्रभाव जरुर दिखाती है।
इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । इसके पश्चात लुम्पक एकादशी व्रत विधि सहित करने लगा। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।
सफला एकादशी सभी शुभ कार्यों को सफल करने वाली है। इसका फल राजसूय यज्ञ सामान है, इस व्रत को करने वाले सभी सांसारिक भोगों के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करते है। इस दिन अधिक से अधिक भजन, संकीर्तन, नाम-जाप आदि जरुर करना चाहिए।
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे